हिन्दी साहित्य का इतिहास

Authors

सुनाली बरगोहाँइ
डॉ. विम्मी बहल
डॉ. अनिल शिवानी

Keywords:

ईश्वर की परीकल्पना, नानकदेव, भक्ति शब्द का आशाय, संत साहित्य में भक्ति, सामाजिक व्यवस्था, हिंदी साहित्य, व्यक्तित्व, डॉ जयराम मिश्र, मनुष्यिा की प्रतिष्ठा, सदगुरु, आध्यामिकता, धर्म, वैयक्तिक, समानता, संतपरम्परा में स्थान

Synopsis

हिन्दी साहित्य के अब तक लिखे गए इतिहासों में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखे गए हिन्दी साहित्य का इतिहास को सबसे प्रामाणिक तथा व्यवस्थित इतिहास माना जाता है। आचार्य शुक्ल जी ने इसे हिन्दी शब्दसागर की भूमिका के रूप में लिखा था जिसे बाद में स्वतंत्र पुस्तक के रूप में १९२९ ई० में प्रकाशित आंतरित कराया गया। आचार्य शुक्ल ने गहन शोध और चिन्तन के बाद हिन्दी साहित्य के पूरे इतिहास पर विहंगम दृष्टि डाली है।

इतिहास-लेखन में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एक ऐसी क्रमिक पद्धति का अनुसरण करते हैं जो अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त करती चलती है। विवेचन में तर्क का क्रमबद्ध विकास ऐसे है कि तर्क का एक-एक चरण एक-दूसरे से जुड़ा हुआ, एक-दूसरे में से निकलता दिखता है। लेखक को अपने तर्क पर इतना गहन विश्वास है कि आवेश की उसे अपेक्षा नहीं रह जाती।

आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक आचार्य शुक्ल का इतिहास इसी प्रकार तथ्याश्रित और तर्कसम्मत रूप में चलता है। अपनी आरम्भिक उपपत्ति में आचार्य शुक्ल ने बताया है कि साहित्य जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्बित होता है। इन्हीं चित्तवृत्तियों की परम्परा को परखते हुए साहित्य-परम्परा के साथ उनका सामंजस्य दिखाने में आचार्य शुक्ल का इतिहास और आलोचना-कर्म निहित है।

इस इतिहास की एक बड़ी विशेषता है कि आधुनिक काल के सन्दर्भ में पहुँचकर शुक्ल जी ने यूरोपीय साहित्य का एक विस्तृत, यद्यपि कि सांकेतिक ही, परिदृश्य खड़ा किया है। इससे उनके ऐतिहासिक विवेचन में स्रोत, सम्पर्क और प्रभावों की समझ स्पष्टतर होती है।

Chapters

  • संत परम्परा में ईश्वर की पररकल्पना और गुरु नानकदेव का संत परम्परा में स्थान
    सुनाली बरगोहाँइ
  • पर्यावरण चिंतन (प्राचीन भारत में - विशेष संदर्भ - महाकवी कालिदास यावं महर्षी श्री शुक्राचार्य रचित शुक्रनीति)
    डॉ. विम्मी बहल , डॉ. अनिल शिवानी

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Published

October 22, 2021

Details about this monograph

ISBN-13 (15)

978-93-90847-27-3