मैथिली उपन्यासक समाजशास्त्रीय द्रुष्टी अध्ययन
Keywords:
उपन्यास, समाजशास्त्रीय द्रुष्टी अध्ययन, उपन्यासक परिभाषा, काव्य, समाज चेतनाक विकास, नवीन जीवन दर्शन, मार्क्सवाद, फ्राईडवाद, गाँधीवाद, उपसंहारSynopsis
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी थिक । ओकरामे सत-असत विवेकनी बुद्धी पाओल जाइछ । ते ओकरा ह्रदयमे नाना प्रकारक भावनाक अस्तित्व रहैत अछि । ओही भावना सभ के विभिन्न रूपे अभिव्यक्त कर्बक इच्छा सेहो मनुष्यमे रहब स्वाभाविके अछि । ई अभिव्यक्ति विभिन्न मध्यमसे अनादिकाल से होईत आबि रहल अछि भावनांक अभिव्यक्तीक साधनक एक प्रधान माध्यम भाषा अछि । रचना क्षेत्रमे प्राचीनकाल से अनेक प्रकारक प्रयोग होइत आबि रहल अछि । साहित्यक क्षेत्रमे कविता, नाटक, गद्य आदि अनेक रूप विद्यांक सृष्टि भेल अछि । उपन्यास कला सेहो सामाजिक अभिव्यक्तीक विद्या थिक ।
उपन्यासक प्रसंग विचार करबाक हेतु उपन्यास शब्दक अर्थ पर विचार करब आवश्यक अछि। उपन्यास शब्दक व्यत्पत्ति "उप " तथा "नि" पूर्वक "अस" धातु सें "धगंद्य" प्रत्यय जोडल्यास भेल अछि । "असं" की अर्थ होइत अछि स्थिर करब । अत: उपन्यास शब्दक व्यत्पत्तीमूलक अर्थ भेल ओ रचना जाहीमे पक्षक संघटन भेल अछि।