व्यवसायिक दुग्ध उत्पादन
Keywords:
पशुपालन, अर्थव्यवस्था, मवेशियों के नस्ल, डेयरी फार्म, पशुओं का चुनाव, आवास प्रबंधन, स्वस्थ्य पशु की पहचान, पशु अपशिष्ट प्रबंधन, पशु को संभालने के तरीके, पशुओं का चारा और पानी, वार्षिक चारा उत्पादन, गर्भवती पशु की देखभाल कैसे करे, कृत्रिम गर्भधान क्यों और कब, पशु आहार में उपस्थित पदार्थ एवं उसे कम करने के तरीके, पशु पालकों के लिए उपयोफी नयी तकनीक, जैविक दूध उत्पादन, पशुओं में होने वाली बीमारियां, स्वच्छ दुग्ध उत्पादनSynopsis
कृषि भारत की अर्थ व्यवस्था की रीढ़ है परन्तु बढ़ती जनसंख्या, घटे जोत का आकार एवं आधुनिकीकरण के इस दौर में किसानों की आय को फसल उत्पादन में वृद्धि के माध्यम से बढ़ना मुश्किल है. अत: कृषि में विविधिकरण आवश्यक है जो डेयरी बकरीपालन एवं मुर्गीपालन, अपनाकर ही सम्भव है.
स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त पहले तीस वर्षों में हमारा ध्यान खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने की और था और अगले तीस वर्षो तक खाद्य सुरक्षा को बनाए रखना था. वर्तमान परिपेक्ष्य में खाद्य सुरक्षा, पोषण सुरक्षा के साथ आर्थिक सुरक्षा आवश्यक है. दुग्ध के निर्यात द्वारा देश के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी पशुओं का महत्त्वपूर्ण योगदान है पशुपालन से ऐसे लोग जुड़े है जो आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से पिछड़े हुए है. इनमें प्रमुख रूप से भूमिहीन मजदूर, छोटे एवं सीमांत किसान आते है. पशुपालन एक ऐसी व्यवसाय है जिसे 'शुरू करने के लिए न तो अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है नही अधिक भूमि की एवं दुग्ध व्यवसाय में शुरू करते ही आमदनी शुरू हो जाती है- इसलिए आज डेयरी एक सतत आमदनी का स्त्रोत बन चूका है. दूध की उपलब्धता बढ़ाकर कुपोषण की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है.
इसी उद्देश्य से कृषि विज्ञान केन्द्र, बांका के वैज्ञानिक के प्रयास से "व्यवसायिक दुग्ध उत्पादन" पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है. आशा है की यह पुस्तक पशुपालकों, प्रसार कार्यकर्ताओं, छात्रों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी.
इसके सफल प्रकाशन के लिए शुभकामनाए....