गहरे पानी पैठ
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गहरे पानी पैठSynopsis
यह पुस्तक डॉ. विश्वमोहन कुमार सिन्हा, जो कि डॉ. बी. एम. के सिन्हा के नाम से जाने जाते थे का एक प्रकार से एकालाप है | प्रोफेसर सिन्हा सी. एम. कॉलेज दरभंगा में अंग्रेज़ी साहित्य के यशस्वी प्रोफेसर एवं प्रिंसिपल थे | ततपश्चात वह बिहार विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बने | वह मगध विश्विद्यालय के प्रथम वाइस चांसलर थे | रिटायरमेंट के बाद पाटलिपुत्र कॉलोनी के स्वअर्जित आवास 99, नं. में रहते थे | वह विशाल मकान उनके स्वयं के बल-बच्चों द्वारा आबाद था | वह प्रायः किराया नहीं लगाते थे परंतु हमें उसकी जरूरत थी | रामचंद्र जी, उनके सबसे बड़े पुत्र समीर सिन्हा यशोलब्ध इंजीनियर साहब की मित्रता के शेयर हम उन तक पहुंचने में कामयाब हुए | यह एक न्य सान्निध्य था | जबकि हमारा एक पुराण आत्मीय संबंध था | मेरे पिता के अनन्य मित्र दरभंगा के कटहलबाड़ी के रामेश्वर प्रसाद सिन्हा विख्यात एडवोकेट (क्रिमिनल) की बहन इनकी धर्मपत्नी थीं |
रामेश्वर बाबू मेरे ससुरजी के भी फ्रेंड फिलॉसफर एंड गाइड हो गए | यहाँ मैं कांग्रेस के नेता रामेश्वर प्रसाद सिन्हा के विषय में कहने चलूँ तब भक जाऊँगी | रामेश्वर बाबू मंत्री भी हुए थे | शायद भोला पासवान शास्त्री के मंत्रिमंडल के मंत्री हुए | उनका विवाह वैशाली के संगीतज्ञ परिवार में हुआ था | पत्नी के एक भाई वृष्णि पटेल हैं | मैं दो-चार दिन बचपन में चाची से सितार सिखने कटहलबाड़ी गई भी, पर वह मेरी जैसी बंडल बच्ची के वश का रोग न था | मैं जब 99, पाटलिपुत्र कॉलोनी में आई तब मेरी कहानियाँ धर्मयुग में छपने लगीं | बी. एम. के. सिंहजी ने कहानी पढ़ी और मुझे बुलाया | खूब प्रोत्साहन दिया | अपना कहानी-संग्रह मुझे पढ़ने को दिया | हिन्दी कहानियाँ छोटी-छोटी एवं किसी हुई आधुनिक भावबोध की थीं | लेखन के कुछ प्रारंभिक प्रकाशित कृतियों पर 99, पाटलिपुत्र छपा अब भी मिलता है तब सिन्हा साहब का हाथ सर पर रहता | उनकी बेटी डॉ. आशा सिन्हा के बच्चे, जो मेरे बच्चों के साथी थे, उन्हें नानाजी कहते | वहीं उनके बेटों के बच्चों के मित्र थे वे उन्हें दादाजी कहते
हमारा घर एक परिवार रहा उनकी पत्नी सप्ताहिक कीर्तन में जातीं | कीर्तन, कभी-कभी उनके घर में भी होता | कई बार मैं उनके साथ बैठी हूँ | मेरी रूचि न रहने पर भी मैं जरूर रहती थी | इससे कई नए अनुभव जुड़ गए |
मैं मन ही मन आश्चर्य से भर जाती कि बड़े से ड्रॉइंग रूम में कीर्तन होता और अत्यंत असिजात सिन्हा साहब सांख्य पुरुष की तरह बरामदे में बैठे रहते | आज यह डायरी पढ़कर सहसा उनका वह स्थितिप्रज्ञ रूप याद आ गया | सिन्हा साहब स्वयं आध्यात्मिक व्यक्ति थे | पूरी डायरी परमपिता की जगज्जनी की खोज को समर्पित है | उन्होंने अपने संकटो को याद किया है कि कैसे छोटे-से बालक थे तभी पिता का साया सर से उठ गया, छोटे भाई-बहन थे | सबका दायित्व इन पर है यह समझते थे | येन-केन-प्रकारेण बहन की शादी और भाई की शिक्षा का प्रबंध स्वयं क्र लिया | जीवन के उत्तरार्द्ध में संतुष्ट तो थे की उन्होंने एक बड़ी मंज़िल तलाश ली, रह चाहे जीतनी अधिक कंटकाकीर्ण हो | जीवन है तो दुख और सुख भी हैं | बड़ी बेटी जो स्वयं डॉक्टर थी पतिविहीन हो गई | एक पुत्रवधू चली गई | सिन्हा साहब ने धैर्य से सब आत्मसात कर लिया | उन्होंने जगदंबा पर आसक्ति को अपना संबल बना लिया | यह डायरी प्रकाशित हो तो लोकोपयोगी | संघर्षशील लोगों को रास्ता मिलेगा और मिलेगी ताकत |
प्रो. सिन्हा की मानविक साधना, परदुखकातरता ने उन्हें पूर्णरूपेण आध्यात्मिक बना डाला था | यह अनुभव अत्यंत सुकूनदायी रहा | उनकी यह पुस्तक प्रकाशित हो ऐसी आकांक्षा उनकी संतान के साथ मुझे भी है | यह सुखद है की देश-विदेश को अंग्रेजी पढ़-पढ़ाकर इन्होंने साहित्य सदा हिन्दी में ही लिखा |